हमें ऐसे सत्गुरू मिल गए हैं जो समस्त सृष्टि के मालिक हैं। वे अमर हैं। इसी कारण उनका नाम जिन्दा-जगदीश है। ऐसे सुन्नि मण्डल सत्लोक में रहने वाले सत्गुरू मिल गए हैं जिनके शीश पर छत्र और मुकुट शोभायमान हैं।
ऐसे सत्गुरू देव जी के गुणों का वर्णन करता हूं जिनके वचन मधुर, रस भरपूर हैं और आनन्द देने वाले हें। उनके ऐसे सार वचन हैं कि चार वेद, छः शास्त्र और अठारह पुराण भी नेति-नेति कर थक जाते हैं।
मैं सत्गुरू देव जी के गुणों का वर्णन करता हूं कि वे अचल है, स्थिर है, उनकी चाल पक्षी की तरह तेज़ और सीधी है। ऐसे सत्गुरू देव जी ने हमारे मन में ज्ञान रूपी वाण मारकर अज्ञान का नाश कर दिया और हमें अमर लोक में ले गए।
हमें तुरीय अवस्था ,ज्ञानी की चतुर्थ अवस्था, में ऐसे सत्गुरू मिल गए हैं जो भगल विद्या की वाणी उच्चारण करते हैं जिससे सार और असार का ज्ञान होता है।
सत्गुरू देव जी ज़िन्दा जोगी ;जन्म-मरण से रहितद्ध है कुल दुनिया के मालिक हैं और सबके गुरू मुर्शिद और पीव हैं उनके उपर काल और कर्म का कोई प्रभाव नहीं होता, न ही उन्हें कोई शंका या भ्रम होता है।