सतगुरू लोहार जैसे हैं हमारा शरीर तलवार के लोहे जैसा है। जिस तरह लुहार तलवार के लोहे को सान पर चढ़ा कर चमका देता है और उसके उपर से सारा जंग उतार देता है, इसी तरह सतगुरू जी उपदेश और अपनी कृपा दृष्टि द्वारा सेवक के मन को शुव कर देते हैं।
सतगुरू जी केले में कपूर की तरह है और हमारी देह केले के पŸो के समान है। जिस तरह केले में कपूर हल्का और शुव होता है इसी तरह सतगुरू जी का शुव स्वरूप है। जिस तरह स्वाति नक्षत्र में सीप में बूंद के पड़ने से मोती पैदा हो जाता है इसी तरह सतगुरू के मिलाप से प्रभु प्रकट हो जाते हैं। जिस तरह चकौर पक्षी का चंद्रमा से प्यार है इसी तरह का प्रेम होने से ही सतगुरू प्राणी को मिलते हैं।
ऐसे समर्थ सतगुरू की सेवा और उपासना करनी चाहिए जो जीवात्मा का तुरन्त उदार कर दे। फिर वह जीवात्मा भवसागर में बार-बार न आए। यम और मृत्यु उसका कुछ नहीं बिगाड़ सके।
ऐसे समर्थ सतगुरू की शरण लेनी चाहिए जो अललपक्षी की तरह गगन मण्डल में अर्थात् उत्तम नगरी में रहता है और नीच ;महापापीद्ध का भी उवार करने में समर्थ है।
महाराज गरीबदास जी कहते हैं कि सतगुरू जी का अपने हंसों के साथ इसी तरह का प्रेम है जिस तरह अललपक्षी का अपने बच्चे के साथ प्रेम होता है। ऐसे सतगुरू जी कबीर साहिब महाराज जी हमें मिले हैं जो सुन्न मण्डल में रहते हैं। उन्होंने अपने प्रेम के बल से हमारा उवार किया है।