उस उत्तम लोक के बाज़ार में अमृत के बहुत प्याले भरे हुए हैं, जिन्हें पी कर प्रभु का प्यार मन में जग जाता है। उत्तम लोक के दरबार में हमारा मतवाला महबूब सत्गुरू हमें ले गया।
उस उत्तम नगर के बाजार में प्रेम के प्याले पीकर प्राणी मस्त होकर झूम रहे हैं। हमारा सत्गुरू हमें ऐसे ही अमरापुरी स्थान में ले गया। सत्गुरू गरीबदास महाराज जी आगे की छः साखियों में आन्तरिक योग लिया का वर्णन करते हैं-
बंकनाल ;टेढ़ी नाड़ीद्ध अर्थात् मेरूदण्ड नाड़ी के भीतर और त्रिवेणी ;इला, पिंगला, सुष्मनाद्ध के किनारे जब जिज्ञासू साधक की सुर्ति और प्राण स्थिर होते हैं, त्रिकुटी रूपी मानसरोवर के किनारे जब जीव रूपी हंस पहंचता है उस स्थान पर कोयल और तोते आदि पक्षियों की आवाज जैसी प्यारी वाणी सुनाई देती है।
सत्गुरू देव जी हमें बंकनाल के अंदर और त्रिवेणी के तट पर ले गए जहां सदैव अमृत रस टपकता है।
महाराज गरीबदास जी कहते हैं कि सतगुरू बंदीछोड़ कबीर साहिब जी हमें बंकनाल के अंदर और त्रिवेणी के तट पर ले गए जहां सदैव अमृत रस टपकता है।