महाराज गरीबदास जी कहते हैं कि गुरूमुख से सुनकर जिसके दिल में सोहं-सोहं की धुनि लग जाती है और प्रभु को मिलने का दिल में दर्द पैदा हो जाता है। ऐसे प्रेमी सेवक के लिए सत्गुरू परलोक जाने का द्वार खोल देते हैं अर्थात् ऐसा नाम का जप करने वाला सेवक सत्गुरू के लोक में पहुंच जाता है।
सोहं बीज मंत्र का जाप अजपा जाप है अर्थात्, इसे जपने हेतु जिह्वा हिलाने की ज़रूरत नहीं पड़ती। यह स्वास की गति द्वारा सुर्ति की धुनि से जपा जाता है। ऐसा अजपा जप करने वाला हंस सुख सागर के महल में पहुंच जाता है जहां न कोई पाप है न कोई पुण्य है अर्थात् मुक्त लोक है।
सोहं बीज मंत्र अजपा जाप है जो बिना रसना के सुर्ति की धुनि से चलता है। ऐसा सुमिरन करने वाले के लिए सत्गुरू का स्थान अत्याधिक नज़दीक है। जहां न कोई बसती और न ही कोई उजाड़ है अर्थात् वह स्थान ब्रह्मलोक या सत्यलोक है। जो इस सुमिरन के जाप से प्राप्त होता है।
सत्गुरू देव प्रभु परमात्मा सुन्न और बसती दोनों से अलग है। मूल मंत्र अंतरात्मा में समाया हुआ है। अंतरात्मा ही पारब्रह्म का स्वरूप है। हमारे सत्गुरू हमें ऐसे ही पारब्रह्म के सत्यलोक में ले गए हैं।
पारब्रह्म प्रभु का नाम ही मूलमंत्र है, जो सुर्ति शब्द के घाट पर है। सुर्ति शब्द के मूल से जो प्राणात्मा में से दिव्य वाणी प्रकट होती है उसे सुन कर देवता और मनुष्य भी धीरज धारण नहीं करते और कोई सत्गुरू का प्यारा पक्का साधक ही उसे सुन सकता है।