तुरीया से आगे तुरीयातीत अवस्था में ही प्राणी पारब्रह्म के द्वीप में पहुंचता है। इसलिए जिज्ञासू को ऐसे सत्गुरू की शरण लेनी चाहिए जो प्राणी को सदैव अंग संग रखे।
गगन मण्डल, जिसे सुन्न मण्डल या सत्यलोक कहते है, वही पारब्रह्म प्रभु का स्थान है। वही सुन्न ;शून्यद्ध शिखिर अर्थात् सत्लोक प्रभु का महल है जो मालिक का सिंहासन है। सत्गुरू की शरण लेने वाले हंस इस लोक में सुख और शान्ति प्राप्त करते हैं।
श्री गरीबदास महाराज जी कहते हैं कि सतगुरू जी ही पूर्ण ब्रह्म हैं। सत्गुरू जी ही स्वयं आलेख पुरूष हैं। सत्गुरू जी ही सारे संसार में राम रूप में रमे हुए हैं। इसमें मीन-मेख ;किन्तु-परन्तुद्ध के लिए कोई स्थान नहीं।
सत्गुरू देव जी ही आदि सनातन हैं। सत्गुरू देव जी ही अनादि हैं। सृष्टि के मध्य में भी सत्गुरू जी ही बिराजमान हैं। सृष्टि का मूल भी वही है। ऐसे सत्गुरू देव जी को मैं एक पल के लिए भी नहीं भूलता हुआ सदैव उन्हें नमस्कार करता हूं।
हमें ऐसा सत्गुरू मिल गया है जिसने शरीर के अष्ट कमलों का छेदन कर दशम द्वार के मार्ग अगमभूमि का भेद बता दिया है। जिस कारण हमने उस उŸाम लोक को देख लिया है।