गौरखनाथ जी और दत्तात्रेय युगों-युगों से ज्ञान योग के द्वारा प्रभु का सिमुरन करते हैं। योगी जालन्धर नाथ, भृतरि और गोपीचंद प्रभु के नाम में मग्न हो गए। महाराज जी कहते हैं कि हे प्रभु! मुझे भी ऐसा ही उपदेश दो कि तुम्हारे सिमुरन में सदैव लीन रहूं।
इब्राहीम सुल्तान, बाजीद जी और फरीद जी प्रभु साहिब के ध्यान में मग्न हो गए हैं। राजा पीपा ने भी प्रभु का दर्शन पा लिया है। नामदेव जी की खातिर प्रभु ने देवलघुमा दिया और उसकी प्रेमा भक्ति से प्रसन्न होकर उसका छप्पर भी स्वयं बांधा था।
प्रभु ने नाम देव जी का छप्पर स्वयं बाूधा और उसकी प्रार्थना सुनकर भगवान ने राजा की मृत गाय को जीवित कर दिया था। प्रभु की कृपा से एक गणिका विमान में बैठकर सत्यलोक को चली गई। सदना कसाई ने एक बकरे में से उपदेश सुन कर जीव हिंसा करना छोड़ दिया था। वह भी भगवान प्रभु के दरबार में पहुंच गया।
अजामिल, जो घोर पापी था, उसका भी संतों के उपदेश से प्रभु की शरण में आने से उवार हो गया। प्रभु का स्वभाव अति नीच पापियों को भी पवित्र करने का है। काशी में कबीर साहिब जी की हूसी करने के लिए षट दर्शन साधू समाज ने झूठा शोर मचा दिया कि कबीर के घर भण्डारा है। बहुत से लोग भण्डारे में भोजन करने हेतु इक्ट्ठे हो गए। प्रभु परमात्मा ने कबीर साहिब जी की प्रार्थना पर केशो सेठ का रूप धारण कर भण्डारा संपूर्ण किया। ऐसे प्रभु की लीला अनन्त है।
धन्ना भक्त ने कृषि में बीजने हेतु रखा बीज संतों की सेवा में लगा दिया और खेत में बीज की जगह कंकर बीज दिए। उसकी सेवा से खुश होकर प्रभु ने उन कंकरों से ही अन्न उत्पन्न कर दिया। माधो दास, प्रभु का सिमुरन करने वाले संत, जो जगन्नाथपुरी के समीप रहते थे। उन्हें रात्रि में तीव्र दस्त लग गए। माधो दास को सर्दी से बचाने हेतु भगवान जगन्नाथ ने अपना ओढ़ा हुआ दोशाला बीमार संतों पर ओढ़ा दिया। जिससे उन संतों की महिमा का गायन हुआ। मुगल बादशाह सिंकदर लोधी के दरबार में सतगुरू कबीर साहिब जी गए। वहा दरबार में बैठे हुए अपने कमण्डल का जल हरि-हरि कहते हुए अपने चरणों पर डाल लिया। बादशाह के पूछने पर सतगुरू जी ने बताया कि जगन्नाथ पुरी में एक पण्डे के पैर पर उबलता हुआ पानी पड़ गया था। हमने उसका पाव जलने से बचाया है।। राजा ने इस बात की तफतीश की तो यह बात सत्य निकली ऐसे सतगुरू देव जी की अन्तरयामता देखकर राजा अति श्रवावान हो गया।