साहिब प्रभु के चरण कमलों का ध्यान करने वाले हंस उनके चरण कमलों में मस्त रहते हैं। वह प्रभु बहुरंगी वरियाम है उसका सूक्ष्म स्वरूप और सांवली सूरत है। वह सदैव अचल और अविनाशी राम है।
सतगुरू देव जी का उपदेश है कि हे जीव! अपनी काया के नौ द्वार बंद करके शंका रहित हो कर दशम द्वार में प्रभु का ध्यान लगाओ। यह दशम द्वार ही प्रभु का मूल स्थान है। यह स्थान अति सुन्दर है। बिना माली के, बिना कुएं के इस स्थान पर उपमा रहित सुन्दर बागीचे की अतिशोभा है। उस बागीचे में बिना लताओं और पौधों के सुन्दर फूल शोभा दे रहे हैं।
साहिब प्रभु के दर्शन करने हेतु आते-जाते श्वासों ,प्राण-अपान, को पलटकर अर्थात् प्राण-अपान को समझ कर कुण्डलिनी को जागृत करो अर्थात् उसका मुख उपर की ओर करो। इस तरह श्वासों को सुरति निरति के साथ जोड़ कर दशम द्वार में स्थिर करो अर्थात् सुरति को दशम द्वार में चढ़ाओ।
हे हंस! इस योग का उपदेश सुनकर सुरति शब्द की साधना का अभ्यास करो। यह गुरू का उपदेश पारब्रह्म का ज्ञान करवाने वाली वाणी है। जिसमें उपदेश है कि उस पारब्रह्म का ध्यान करते हुए संसार में जीवत रहते मृतक की तरह इच्छा रहित हो जाओ। उस समय ही प्रभु की प्राप्ति होगी।
साहिब प्रभु के सत्यलोक में अति सुन्दर बाग-बगीचे हैं जो शुव सोने की तरह प्रकाशमान हैं। उस नाश रहित बाग में श्वेत भंवरे गुजार कर रहेहैं। इसलिए हे हंस ! इस संसार में तीव्र वैराग्य धारण करके सोहं मंत्र के अजपा जाप के माध्यम से मृत्यु को जीत लो।