देवता, मानव, मुनिजन, सिजन और साधक सब पारब्रह्म प्रभु के नाम का रटन करते हैं। इन सबके घट-घट में उसी प्रभु के मंगलाचार गाए जा रहे हैं और चैरी राग हो रहे हैं। प्रभु के ज्ञान और योग का प्रशाद बांटा जा रहा है अर्थात् प्रभु नाम की ज्ञान चर्चा हो रही है।
चित्र और गुप्त जो यमराज के दूत हैं वे प्रत्येक प्राणी के बाहरी कर्म और आन्तरिक भावना को हर समय लिखते रहते हैं। इस तरह के लेखक चित्र-गुप्त और धर्मराज, साहिब प्रभु का गुणगान करते हैं। करोड़ों के संख्या में सरस्वती और आदि शक्ति भी प्रभु की उपमा गा रहे हैं। इस तरह का पारब्रह्म प्रभु का दरबार है।
स्वर्गलोक के राजा इंद्र देव हैं। इन्द्र देव के पास कामधेनु गाय है और कल्पवृक्ष भी इन्द्र लोक के बाग में हैं। ऐसे देवताओं के राजा इंद्रदेव जैसे अनन्त इन्द्र साहिब प्रभु के दरबार में उनकी महिमा के शब्दों का गायन कर रहे हैं। पार्वती जी, लक्ष्मी जी साहिब के दरबार में करबव खड़ी हैं। सावित्री भी साहिब की शोभा गा रही हैं। ऐसा प्रभु का निराला दरबार है।
देवताओं के दरबार में रागी गन्धर्व, बड़े-बड़े ज्ञानी जन, मननशील महात्मा ध्यानी, योगी और सृष्टि के पंच तत्व सभी मिलकर साहिब के दरबार में सेवा करते हैं। इस संसार में तीन गुणों के प्रभाव वाले अनेक प्राणी हैं जो सब उस प्रभु के अंश-वंश हैं। लेकिन कोई विरला ही उस प्रभु के दरबार में दास्य भाव में पूरा रहता है। शेष सब तीन गुणों के प्रभाव में आ जाते हैं।
ध्रुव और प्रहलाद, साहिब प्रभु के दरबार में दासों की गिनती में है। राजा जनक विदेही जी का दास्य भाव बहुत ज्यादा है। जो राज्य करते हुए भी विदेही पद को प्राप्त हुए हैं। साहिब प्रभु के प्रति उनका सच्चा-सिमुरन इतना ताकतवर था कि जब जनक जी का विमान यमलोग के उपर से गुजरा तो नरक के सब जीवों के दुःख दूर हो गए। उन्हें शान्ति मिल गई जनक जी का ध्यान जब यमलोक की तरफ हुआ तो समस्त जीवों को दुःखी देखकर उन्हें दया आ गई। उन्होंने अपने सिमुरन के बल से समस्त जीवों को कर्मों की सज़ा से मुक्त करा दिया। धर्मराज से उनके बन्धन छुड़ा दिए।