सतगुरू जी उपदेश करते हैं कि हे हंस! अपनी मनसा रूपी नारी को पनिहारी बनाओ और खाकी मन को माली बनाओ। अपनी काया का घड़ा बनाकर, साधना रूपी बाग को पानी लगा कर उसेहरा-भरा करो जिससे साधना रूपी बाग में अच्छे-अच्छे फूल खिल जाएं अर्थात् इस शरीर में मन के द्वारा प्रभु के नाम की खूब उपासना करो।
साहिब प्रभु को कश्यप अवतार, मच्छ अवतार और धौल ;जिसने पृथ्वी को अपने सींग पर धारण किया हुआ ह, आदि सब उसका ध्यान करते हैं। पताल लोक में शेषनाग भी हज़ारों मुखों से उस साहिब के गुण गाते हैं। नारद मुनि जी सरीखे प्रेमा भक्ति द्वारा उसका दिन रात नाम रटते हैं। सृष्टि को पैदा करने वाले ब्रह्मा जी भी प्रभु का पार नहीं पा सकते।
भगवान शंकर जी उस प्रभु के विरह-वियोग में योग-साधना के द्वारा अचल, अफुर समाधि लगाते हैं। परन्तु अविगत प्रभु की गति को कोई नहीं जान सकता। उसकी लीला अपरंम्पार है।
सनकादिक अािद संत, चैरासी सिव और चैबीस अवतार भी प्रकाश स्वरूप परमहंस साहिब प्रभु का ध्यान लगाते हैं।
अट्ठासी हज़ार ऋषि और तैंतीस करोड़ देवता साहिब प्रभु का ध्यान धरते हैं। उस प्रभु के दरबार में सूर्य-चंद्रमा दीपकों के समान है। धरती आकाश और धरती को धारण करने वाले भी प्रभु का नाम रटते हैं। उसकी गति को कोई नहीं जान सकता। वह अचल और प्रेम रूप हैं।