ऐसा प्रभु जिसकी महिमा का कोई पार नहीं पा सकता, वह सबका आदि कारण है अर्थात् सारा संसार उस से ही उत्पन्न हुआ है। वह सतगुरू समस्त प्राणियों में समाया हुआ है। वहीं प्रभु गगन मण्डल में विराजमान है जिसकी कोई जाति और दीन नहीं है। वह प्रत्येक प्राणी में समान रूप में समाया हुआ है।
साहिब प्रभु सुख का सागर है और रत्नों की खान है। उसे किसी का भय नहीं है। बिना मुख के ही वह वाणी बोलता है। उसका न ही कोई आकार है न ही तोल-माप है। वह अति निर्मल है। वह इन आंखों से दिखाई नहीं देता और किसी की पकड़ में नहीं आता।
साहिब प्रभु का नूर अति प्रकाशमान झिलमिल-झिलमिल कर रहा है। उसके नूर का करोड़ों पदमों जितना उजाला है। उसके दर्शन करने हेतु दोनों आंखों की पुतलियों को पलट कर जब त्रिकुटी कंवल में देखने का अभ्यास किया जाता है तो उसके नूर का समस्त जगत में दर्शन होने लगता है।
साहिब प्रभु शरीर के समस्त कंवलों में समाया हुआ है। परन्तु सुरति निरत के द्वारा उसे त्रिकुटी कमल में देखा जाता है। इस सुन्न स्थान में सफेद गुम्बज के आगे पांच रंगों के झण्डे लहरा रहे हैं। इस स्थान पर ऐसे सुन्दर गुम्बज में प्रभु के दर्शन होते हैं।
इस काया के नौ द्वार ;गुदा द्वार, मूत्र द्वार, मुख द्वार, दो आंखें, दो कान छिद्र, दो नासिका छिद्र बन्द करके अर्थात् उन पर से ध्यान को हटाकर सुन्न मण्डल दशम द्वार अर्थात् सत्य लोक को जाते हैं। जब प्राणी ऐसा ध्यान लगाता है तो सुन्न मण्डल में बिन आंखों के निरत के द्वारा एक सुन्दर स्वरूप का दर्शन होता है। बिना कानों के सुरति से अति प्यारी धुनि सुनाई देती है।