भक्ति से प्रसन्न होकर कबीर साहिब का भण्डारा करने हेतु साहिब प्रभु केशो बनजारे का रूप धारण कर काशी में कबीर साहिब जी के घर आए। कबीर साहिब जी, सन्त रविदास और कमाल जी के साथ साहिब का गुण गान कर रहे थे। बैलों पर भण्डारे की सामग्री लाद कर हे हरि हे हरि ;बैलों को हाकने का शब्द करते हुए आए और भण्डारा पूर्ण किया। सतगुरू साहिब जी की महिमा अपरम्पार है।
अविगत पुरूष अपनी भक्ति के हित कारण सतगुरू कबीर के रूप में काया धारण करके आए। ऐसे विशाल सतगुरू जो ईश्वरीय शक्ति के साथ समस्त विश्व में व्याप्त हैं। वह अचल और धीर है। वह निराकार हैं।
श्री नानक साहिब जी और श्री दादू साहिब जी की गति भी अपरम्पार है जिन्होंने प्रभु से बिछुड़े हुए अनेक जीवों को भक्ति का उपदेश देकर उनका उवार किया है। कुशल मल्लाह बनकर अनेक प्राणियों की डूबती नैया को तारा है। ये सुखसागर के हंस, हृदय में प्रभु की भक्ति धारण करके विश्व में अवतरित हुए।
सतगुरू कबीर जी, जिनके शब्द स्वरूप शरीर के एक-एक रोम में करोड़ों सूर्यों का प्रकाश हो रहा है। ऐसे सतगुरू अचल और अभंगी हैं और सत्य स्वरूप करके सबमें विराजमान हैं। सतगुरू कबीर साहिब का दर्शन, मानो अवगत पुरूष का ही दर्शन है।
महाराज गरीबदास जी कहते हैं कि हे मेरे उपदेश देवा गुरू देव! आप धन्य हो। आपने उपदेश देकर मेरे चैरासी के कर्म-भ्रम सब मिटा दिए हैं। हे सतगुरू जी! आप तेजपुंज प्रकाश का शरीर धारण करके हमें आकर मिले। अतिकृपा करके हमें ऐसे रूप में आपका दर्शन हुआ।