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।। ब्रह्म वेदी ।।

ज्ञान सागर अति उजागर, निर्विकार निरंजनं।
ब्रह्म ज्ञानी महा ध्यानी, सत्य सुकृत दुख भंजनं।।1।।

सतगुरू गरीबदास महाराज जी का कथन है कि पारब्रह्म प्रभु ब्रह्मदेव ज्ञान का सागर हैं और तेज पुंज प्रकाश स्वरूप है। उनमें कोई भी विकार नहीं है और वह मायामय आंखों के देखने में नहीं आते। उस बह्म देव को जानने वाले अर्थात् उसका सदैव ध्यान करने वाले को ही ज्ञानी और ध्यानी कहा जाता है। उस सत्यपुरूष का ज्ञान और ध्यान करने से समस्त दुःख दूर हो जाते हैं।

मूल चक्र गणेश वासा, रक्त वर्ण जहां जानिये।
किलियं जाप कुलीन तज सब, शब्द हमारा मानिये।।2।।

मूल चक्र , जिसे मूलाधार कहते हें, यह गुदा स्थान में है। यहां गणेश जी का निवास है। इस कंवल का रंग लाल है। यह चार पंखुड़ी का कमल है। इस कमल में प्राण स्थिर करके साधक जन किलियं शब्द का जाप करते हैं। सतगुरू जी कहते हैं कि हमारा वचन मान कर बुरे विचारों का त्याग करना चाहिए।

स्वाद चक्रब्रह्मादि वासा, जहां सावित्री ब्रह्मा रहै।
ओउम् जाप जपंत हंसा, ज्ञान योग सतगुरू कहै।।3।।

मूलाधार के उपर जननेन्द्री में स्वाद चल अर्थात् स्वादिष्ठान चल है वहां सृष्टि को पैदा करने वाले ब्रह्मा जी सावित्री सहित निवास करते हैं। इसका श्वेत रंग है और आठ पंखुड़ियों का कमल है। जहां योगी जन प्राणों को स्थिर करके ओउ्म बीज मंत्र का जाप करते हैं। इस उपासना को सतगुरू जी ज्ञान योग कहते हैं।

नाभ कंवल में विष्णु विश्वम्भर, जहां लक्ष्मी संग बास है।
हरियं जाप जपंत हंसा, जानत बिरला दास है।।4।।

स्वाद चल से उपर नाभि स्थान में नाभि-कमल है। जहां जगत् का पालन करने वाले विष्णु भगवान जी, लक्ष्मी जी के साथ निवास करते हैं। इस कंवल का रंग सांवला है। योगी इस कमल में प्राणस्थिर करके हरीयं का जाप करते हैं। सतगुरू देव जी का कोई विरला साधक ही इस भेद को जानता है।

हिरदे कंवल महादेव देवं, सती पार्वती संग है।
सोहं जाप जपंत हंसा, ज्ञान योग भल रंग है।।5।।

नाभिकमल से उपर हहृय कमल है। इस कमल में भगवान महादेव शंकर जी सती पार्वती के साथ निवास करते हैं। इस कमल का रंग स्वर्णिम है। यह बारह पंखुड़ियों का कमल है। इस कमल में साधकजन प्राणस्थिर करके सोहं बीज मंत्र का जाप करते है। इस जाप के साथ बहुत शीघ्र ब्रह्म ज्ञान का रंग चढ़ता है।

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