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।। अथ मंगलाचरण ।।

आदि गणेश मनाऊँ, गण नायक देवन देवा।
चरण कमल ल्यौ लाऊँ, आदि अंत कर हूँ सेवा ।6।

वह प्रभु सर्वप्रथम है इसलिए उसे आदि गणेश कहा जाता है, वह सब देवों का देव और सब जीवों का मालिक है। मैं उसके चरण कमलों में ध्यान लगाता हूं और आदि से अन्त तक ;सदैव उसकी सेवा करता रहूंगा।

परम शक्ति संगीतं, रिद्धि सिद्धि दाता सोई ।
अविगत गुणह अतीतं, सत्यपुरूष निर्मोही ।7।

प्रभु परम शक्ति रूप सबके अंग-संग हैं और सब रिद्धियों-सिद्धियों का दाता है। उस अतीत पुरूष के गुणों को कोई नहीं जान सकता। उसे किसी के साथ मोह भी नहीं है।

जगदम्बा जगदीशं, मंगल रूप मुरारी।
तन मन अरपूं शीशं, भक्ति मुक्ति भंडारी।8।

वह प्रभु समस्त जगत् का मालिक और पालक है। वह मंगल रूप है। ‘मुर’ नानक दैत्य को मारने के कारण उसका नाम मुरारी भी है। उस प्रभु को मैं अपना तन, मन, शीश अर्पण करता हूं। वह भक्ति-मुक्ति का भण्डार है।

सुरनर मुनिजन ध्यावैं, ब्रह्मा विष्णु महेशा ।
शेष सहंस मुख गावैं, पूजैं आदि गणेशा ।9।

उस साहिब का देवता, मनुष्य, मननशील साधक और ब्रह्मा, विष्णु, महेश ध्यान करते ;पूजते हैं। शेषनाग जी हज़ारों मुखों से उस आदिगणेश की महिमा गाते हैं और उसकी पूजा करते हैं।

इन्द्र कुबेर सरीखा, वरूण धर्मराय ध्यावैं।
समरथ जीवन जीका, मन इच्छ्या फल पावै।10।

उस प्रभु को स्वर्ग लोक के राजा इन्द्र, कुबेर भण्डारी, वरूण देव, धर्मराज जैसे पूजते हैं। वह समर्थ पुरूष सबका मालिक है और सबका जीवन है। उसका ध्यान करने से मनो-इच्छित ;मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

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