सतगुरू देव श्री गरीबदास महाराज जी सर्वप्रथम सत्यपुरूष साहिब को पुनः-पुनः नमन करते हैं। फिर गुरू देव को नमस्कार करते हैं। मनुष्य, देवता, मननशील साधक, साधु जन सबके प्रति अपना सर्वस्व समर्पित करते हैं।
सतगुरू, साहिब और सत्यवादी सन्तजनों को दण्डवत् प्रणाम है, जो पूर्व में हो चुके हैं, जो भविष्य में होंगे और जो अब वर्तमान में मौजूद हैं, उनसे मैं कुर्बान जाता हूं।
पारब्रह्म प्रभु जो आकार रहित है, विषयों से रहित है, उसका ध्यान करने से काल-जाल का भय समाप्त होता है। उस प्रभु को विश्व का कोई लेपन नहीं चढ़ता। वह प्रभु स्वयं के स्वरूप में स्थित रहता है। वह तीनों गुणों ;सत्गुण, रजोगुण एवं तमगुण से परे हैं। संसार की कल्पना और उपमा से रहित हैं। वह अभाव रहित और शब्द रूप ब्रह्म हैं।
ऐसे प्रभु के ध्यान में अपनी सुर्ति को लीन करो क्योंकि जो पारब्रह्म प्रभु है वही प्राणी की अन्तरात्मा है, वह प्रभु सर्व व्यापक है। उसके ध्यान में अपनी सुर्ति-निरत को लीन करो। वह निर्मल, सोने की तरह प्रकाशमान, हर समय एक ही अवस्था में रहता है। वह बेपरवाह है। उसकी महिमा का कोई आदि, मध्य अथवा अन्त नहीं पाया जा सकता।
ऐसे प्रभु का सिमरन करने से समस्त कार्य सि होते हैं। वह प्रभु सब का मालिक है और सब में लीन है। पारस जैसे गुण वाले मालिक के समक्ष कृपा-याचना करो।